
Roshan Vishwakarma Art
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छोटे साहिबजादे बलिदान की कहानी
सिख इतिहास में छोटे साहिबजादे का बलिदान एक महत्वपूर्ण अध्याय है। यह कहानी सिखों के लिए प्रेरणा और बलिदान का प्रतीक है।
सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी के चार पुत्र थे - साहिबजादा अजीत सिंह, साहिबजादा जुझार सिंह, साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह। इनमें से दो छोटे साहिबजादे, साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह का बलिदान एक महत्वपूर्ण घटना है।
साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह का जन्म 1691 में हुआ था। वह गुरु गोबिंद सिंह जी के सबसे छोटे पुत्र थे।
1705 में, मुगल बादशाह औरंगजेब ने सिखों पर हमला किया और गुरु गोबिंद सिंह जी को अनंदपुर साहिब छोड़ने के लिए मजबूर किया। गुरु जी अपने परिवार और सिख सेना के साथ अनंदपुर साहिब से निकले और सरसा नदी के किनारे पहुंचे।
इसी दौरान, मुगल सेना ने सिखों पर हमला किया और गुरु जी के परिवार को अलग कर दिया। साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह अपने दादा गुरु तेग बहादुर जी की बहन के घर में छुपे हुए थे।
मुगल सेना ने उन्हें ढूंढ लिया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया। मुगल अधिकारियों ने उन्हें इस्लाम धर्म अपनाने के लिए मजबूर करने
की कोशिश की, लेकिन उन्होंने मना कर दिया।
नवंबर 1705 में, साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह को सरहिंद के किले में ले जाया गया और उन्हें दीवार में जिंदा चुनवा दिया गया।
इस घटना ने सिख समुदाय को गहरा आघात पहुंचाया और उन्हें औरंगजेब के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया। सिखों ने इस घटना को "छोटे साहिबजादे का बलिदान" के रूप में याद किया और उन्हें शहीद के रूप में सम्मानित किया।
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